गोपाष्टमी व्रत कथा – Gopashtami Vrat Katha : कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को गोपाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी जिसके लिए गौ माता की सेवा की जाती है। इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है। आज हम आपको गौपाष्टमी की कथा सुनाने वाले हैं। गोपाष्टमी की कथानुसार इस दिन गौ माता की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी। माना जाता है कि गोपाष्टमी के दिन पूरे मन से भक्ति के साथ पूजा पाठ करने से भक्तों को इच्छित फल की प्राप्ति होती है. पूजा पाठ के बाद शाम को व्रत कथा पढ़ी जाती है. व्रत कथा के बिना कोई भी व्रत अधूरा माना जाता है और पूजा का फल भी नहीं मिलता. आइए जानते हैं गोपाष्टमी की व्रत कथा

गोपाष्टमी का महत्व | Gopashtami Significance In Hindi
गौ और ग्वालों की पूजा को समर्पित गोपाष्टमी आज मनाई जा रही है। हमारे हिन्दू धर्म तथा शास्त्रों में गाय को सभी प्राणियों की माता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गाय की देह में समस्त देवी-देवता वास करते है। माना जाता है कि जो व्यक्ति सुबह स्नान कर गौ माता को स्पर्श करता है, वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है उस जगह से सभी पाप खत्म हो जाते हैं। गाय को चारा खिलाने पर बहुत पुण्य मिलता है। यह पुण्य हवन या यज्ञ करने के समान होता है। जिस घर में सभी सदस्यों के भोजन करने से पहले गाय के लिए खाना निकाला जाता है, उस परिवार में कभी भी अन्न-धन की कमी नहीं होती है।
गोपाष्टमी पूजन विधि | Gopashtami Puja Vidhi
इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है। इस दिन प्रातः काल उठ कर नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान करते है, प्रातः काल ही गौओं और उनके बछड़ों को भी स्नान कराया जाता है। गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि के थापे लगाए जाते हैं, गायों को सजाया जाता है, प्रातः काल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ माता की पूजा की जाती है और आरती उतरी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है।
गोपाष्टमी व्रत कथा | Gopashtami Vrat Katha
प्राचीन काल में एक बार बाल गोपाल (भगवान कृष्ण) जब 6 साल के थे तो मां यशोदा से कहने लगे कि मां अब मैं बड़ा हो गया हूं और अब मैं बछड़े चराने नहीं जाऊंगा। मैं गौ माता के साथ जाऊंगा। इसपर यशोदा ने बात नन्द बाबा पर टालते हुए कथा कि अच्छा ठीक है लेकिन एक बार बाबा से पूछ तो लो। इसपर भगवान कृष्ण जाकर नंद बाबा से कहने लगे कि अब मैं बछड़े नहीं बल्कि गाय चराने जाया करूंगा। नंद बाबा ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन बाल गोपाल के हठ के आगे उनकी एक न चली। फिर नंद बाबा ने कृष्ण से कहा कि ठीक है तो पहले जाकर पंडित जी को बुला लाओ ताकि उनसे गौ चारण के लिए शुभ मुहूर्त का पता लगाया जा सके।

ये सुनकर बाल गोपाल दौड़ते हुए पंडित जी के पास पहुंचे और एक सांस में उनसे कह डाला कि- पंडित जी, आपको नंद बाबा ने गौ चारण का मुहूर्त देखने के लिए बुलाया है। आप आज ही शुभ मुहूर्त बताना तो मैं आपको खूब ढेर सारा मक्खन दूंगा। पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और पंचांग देखकर उसी दिन को गौ चारण के लिए शुभ मुहूर्त बता दिया और साथ ही यह भी कह दिया कि आज के बाद से एक साल तक गौ चारण के लिए कोई भी मुहूर्त शुभ नहीं है।
नंद बाबा ने पंडित जी की बात पर विचार करते हुए बाल गोपाल को गौ चारण की आज्ञा दे दी। भगवान दिन उसी दिन से गाय चराने जाने लगे। जिस दिन से बाल गोपाल ने गौ चारण आरंभ किया था उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। भागवान द्वारा उस दिन गाय चराना आरंभ करने की वजह से इसे गोपाष्टमी कहा गया।
Why is Gopashtami Celebrated?
The festival of Gopashtami is celebrated in Shukla Paksha during Kartik month. It is believed that on this day, Lord Krishna lifted Govardhan Parvat on his finger to protect Braj natives from the fury of Lord Indra. Owing to this, Lord Indra’s arrogance got destroyed. In this context, the tradition of celebrating the festival of Gopashtami in Braj region and the entire India started.

Gopashtami Vrat Katha
In ancient times, when Lord Krishna turned six he told Maa Yashoda that he had grown up and he would not take the calf for grazing but he would go with the cow mother. Mayuri Sudha advised pertaining to the same several times that if he was still small and in this pretext, he only needed to take calf for grazing.
Lord Krishna went to Nand Baba and he said to him, ‘Baba/father, I will go to graze the cows, not the calves.’ Then Nand Baba replied, ‘Okay but first go and call Pandit ji so that he can find out the auspicious time for Gau Bharan.’ Hearing this from Nand’s mouth, Bal Gopal came running to Panditji and said, “Panditji, you have been invited by Nand Baba to decide the Muhurat of Gau Charan. Please tell them something auspicious today. If you do this, I will give you a lot of butter.’
Pandit ji reached Nand Baba and after looking at the Panchang said that auspicious time for Gau bharan. Apart from this, Pandit ji also said that if not today, the auspicious time of Gau bharan is after one year.
In such a situation, after listening to Panditji, Bal Gopal was given permission to graze cows. Lord Krishna started grazing cows from the same day. It is said that from the day Bal Gopal started Gau Baran, it was the Ashtami Tithi of the Shukla Paksha of Kartik month. Lord Krishna started grazing the cow on the same day, due to which it was called Gopashtami Tithi.