Tulsi Vivah Katha – तुलसी विवाह कथा : कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इसे देवउठनी एकादशी, देवोत्थान या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह होता है। इस दिन तुलसी का भगवान शालिग्राम के साथ विधि विधान से विवाह कराया जाता है। तुलसी विवाह के दिन पर भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है। ये विवाह पूरे रीति-रिवाज के साथ कराया जाता है। तुलसी विवाह के साथ ही सभी मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति कन्या सुख से वंचित होते हैं, उनको इस दिन तुलसी विवाह जरूर करना चाहिए, ताकि कन्या दान का फल प्राप्त हो सके।
Tulsi Vivah is the ceremonial marriage of the Tulsi (holy basil) plant to the Hindu god Shaligram or Vishnu or to his avatar, Sri Krishna. The Tulsi wedding signifies the end of the monsoon and the beginning of the wedding season in Hinduism. The ceremonial festival is performed anytime between Prabodhini Ekadashi (the eleventh or twelfth lunar day of the bright fortnight of the Hindu month of Kartik) and Kartik Poornima (the full moon of the month). The day varies regionally.

तुलसी विवाह पूजा विधि : Tulsi Vivah Puja Vidhi
सबसे पहले तुलसी के पौधे को आंगन के बीचों-बीच में रखें और इसके ऊपर भव्य मंडप सजाएं। इसके बाद माता तुलसी पर सुहाग की सभी चीजें जैसे बिंदी, बिछिया,लाल चुनरी आदि चढ़ाएं। इसके बाद विष्णु स्वरुप शालिग्राम को रखें और उन पर तिल चढ़ाए क्योंकि शालिग्राम में चावल नही चढ़ाए जाते है। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। साथ ही गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें। अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें। इसके बाद दोनों की घी के दीपक और कपूर से आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।
तुलसी विवाह की कथा | Tulsi Vivah Ki Katha
प्राचीन काल में एक जलंधर नाम का असुर था। जिसका विवाह वृंदा नाम की कन्या से हुआ। वृंदा दैत्यराज हिरणकश्यप-हिरण्याक्ष की सुपौत्री व कालनेमी की पुत्री थी। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थीं। वहीं वृंदा पतिव्रता भी थी। इसी कारण जलंधर अजेय हो गया। वहीं असुर जलंधर को इस बात का घमंड भी हो गया। इसके बाद वह स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा। जब सभी देवता इस बात से दुःखी हो गए तो वह भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे।
भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया। उन्होंने छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इसके बाद असुर जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई। एक युद्ध में जलंधर मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो वो क्रोधित हुईं और उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना शाप वापिस तो ले लिया लेकिन भगवान विष्णु अपने किये पर काफी लज्जित थे। अतः वृंदा के शाप को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया।
भगवान विष्णु को दिया शाप वापस लेने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई। वृंदा के राख से तुलसी का पौधा उगा। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। बस इसी पौराणिक घटना को याद रखने के लिए हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।
भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।

तुलसी विवाह व्रत कथा | Tulsi Vivah Vrat Katha -2
तुलसी विवाह के दिन हम आपको तुलसी और गणेश जी से जुड़ी एक कथा बताने जा रहे हैं, जो तुलसी के विवाह प्रस्ताव से जुड़ा है।
तुलसी करना चाहती थीं गणेश जी से विवाह
एक बार माता तुलसी अपने विवाह की मनोकामना की पूर्ति से तीर्थ यात्रा कर रही थीं। उसी दौरान भगवान गणेश जी गंगा के तट पर तप में लीन थे। इधर माता तुलसी एक एक कर के सभी तीर्थ स्थलों का भ्रमण करती हुई गंगा के उसी तट पर पहुंच गईं, जहां पर विघ्नहर्ता श्री गणेश जी तप में लीन थे। गणेश जी को तप में लीन देखकर माता तुलसी उन पर मोहित हो गईं। उन्होंने गणेश जी का ध्यान भंग कर दिया और उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा। इस पर गणेश जी क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा कि वे ब्रह्मचारी हैं, वे विवाह नहीं कर सकते।
तुलसी ने गणेश जी को दिया श्राप
गणेश जी से विवाह का प्रस्ताव ठुकराए जाने से माता तुलसी क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया कि उनका दो विवाह होगा। वे दो पत्नियों के स्वामी बनेंगे। बाद में ऋद्धि और सिद्धि उनकी दो पत्नियां बनीं। श्राप के कारण उनका दो विवाह हुआ।
गणेश पूजा में वर्जित हो गईं तुलसी
तुलसी के इस श्राप से गणेश जी फिर क्रोधित हो गए और माता तुलसी को शंखचूड़ नाम के असुर से विवाह होने का श्राप दे दिया। एक राक्षस की पत्नी बनने का श्राप पाकर माता तुलसी ने अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की। तब गणेश जी ने उनको आशीर्वाद दिया कि वे भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण की प्रिय होंगी। कलयुग में तुलसी लोगों के लिए जीवनदायनी होंगी। साथ ही गणपति ने कहा कि आज से उनकी पूजा में तुलसी वर्जित रहेंगी। उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होगा।
तुलसी व्रत कथा | Tulsi Vrat Katha in Hindi -3
तुलसी विवाह के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कथा ननद-भाभी की है। कथा मिलती है कि ननद सच्चे मन से तुलसी मां की विशेष पूजा करती थी। लेकिन उसकी भाभी को यह सब पसंद नहीं था। वह अक्सर ही गुस्से में उसे कोसती और कहती कि दहेज में भी वह तुलसी ही देगी। यही नहीं वह बारातियों को खाने में भी तुलसी ही परोसेगी। फिर ननद के विवाह की भी घड़ी आई। भाभी ने बारातियों के सामने तुलसी का गमला तोड़ दिया। ईश्वर की कृपा से वह लजीज व्यंजन में बदल गया। भाभी को यह रास नहीं आया। तो उन्होंने ननद को गहनों की जगह तुलसी की मंजरी पहना दी। क्षणभर में वह सोने के आभूषण में बदल गई। इसके बाद भाभी ने वस्त्रों की जगह जनेऊ रख दिया। वह भी रेशमी वस्त्रों में बदल गया। उधर ससुराल में भी बहू की बहुत बड़ाई हुई। तब भाभी को भी तुलसी पूजा का महत्व समझ आया।
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Tulsi Maa Aarti : तुलसी माता की आरती